भीलवाड़ा का इतिहास, भूगोल और रोचक तथ्य | History of Bhilwara in Hindi

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यह लेख राजस्थान के प्रसिद्ध शहर भीलवाड़ा का इतिहास (History of Bhilwara in Hindi) से जुड़ी जानकारी से सम्बंधित है। भीलवाड़ा जिला राजस्थान का मैनचेस्टर, अभ्रक नगरी, वस्त्र नगरी, तालाबों की नगरी, टेक्निकल सिटी ऑफ़ राजस्थान, राजस्थान की टेक्सटाइल सिटी जैसे उपनामों से पूरे भारत में लोकप्रिय है।

यहाँ बनने वाले वस्त्र केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में एक्सपोर्ट किये जाते है। कपड़े के व्यापार के कारण भीलवाड़ा राजस्थान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसके अलावा ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी भीलवाड़ा एक महत्वपूर्ण जिला रहा है और लगातार यहाँ पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।

इस लेख में हमने भीलवाड़ा जिले के इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी दी है साथी ही भीलवाड़ा का भूगोल, भीलवाड़ा के प्रमुख मेले और त्यौहार, भीलवाड़ा के प्रमुख दर्शनीय स्थल, भीलवाड़ा की प्रमुख नदियाँ और बाँध भीलवाड़ा से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों की जानकारी दी गयी है। इस लेख को अंत तक जरूर पढ़े।

भीलवाड़ा का परिचय

Table of Contents

शहर का नामभीलवाड़ा
राज्यराजस्थान
देशभारत
क्षेत्रफल10,455 वर्ग किमी.
जनसँख्या24,08,523
तहसीलें भीलवाड़ा, आसींद, माण्डल, जहाजपुर, शाहपुरा, मांडलगढ़, कोटड़ी, बुरडा, साहड़ा, बनेड़ा, रायपुर, बिजौलिया
विधानसभा क्षेत्र आसींद, मांडल, सेहरा, भीलवाड़ा, शाहपुरा, जहाजपुर, मांडलगढ़
जनसँख्या घनत्व230/वर्ग किमी.
उपनामवस्त्र नगरी, मैनचेस्टर ऑफ़ राजस्थान, अभ्रक नगरी, राजस्थान का तकनिकी शहर, सिटी ऑफ़ टेक्सटाइल्स
भीलवाड़ा की प्रसिद्धी का विवरणदेवनारायण मंदिर, मेनाल जलप्रपात, रामद्वारा, सवाई भोज मंदिर, वस्त्र उद्योग, फड़ पेंटिंग आदि

भीलवाड़ा का इतिहास व स्थापना

भीलवाड़ा जिले के इतिहास से सम्बंधित अलग-अलग तर्क मौजूद है। पहला तर्क यह कहता है कि 11वीं सदी में भील राजाओं ने यहाँ जटाऊ शिव मंदिर का निर्माण किया था और धीरे-धीरे मंदिर के आस पास आबादी बसने लगी। इसी भील जनजाति के आधार पर इस जिले का नाम भीलवाड़ा रखा गया था।

भील जनजाति का मेवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वतंत्रता से पहले भीलवाड़ा भी मेवाड़ रियासत के अधीन था लेकिन बाद में इसे अलग जिला घोषित कर दिया गया। पहले तर्क के अनुसार इस जिले का नाम भील जनजाति की अधिकता के कारण रखा गया लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि वर्तमान समय में यहाँ भील जनजाति के बहुत कम लोग रहते है।

भीलवाड़ा जिले के इतिहास से सम्बंधित दूसरा तर्क कहता है कि इस क्षेत्र के मेवाड़ राज्य की अधीनता के समय एक सिक्के ढालने की टकसाल थी जिसमे “भीलाड़ी” नाम के सिक्के ढाले जाते थे वही से इस क्षेत्र का नाम “भीलवाड़ा” रखा गया। मुख्य रूप से यह क्षेत्र चौहान और गुहिल राजपूतों के अधीन हुआ करता था।

प्राचीन काल में भीलवाड़ा मेवाड़ रियासत के अधीन था लेकिन 1949 में इसको नई रियासत शाहपुरा में शामिल किया गया। भीलवाड़ा में 12वीं सदी के आसपास बने बहुत सारे प्राचीन मंदिर मौजूद है और इनमे से ज्यादातर मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है।

भीलवाड़ा के शाहपुरा में केसरी सिंह बारठ, जोरावर सिंह बारठ और प्रताप सिंह बारठ की शानदार हवेलियाँ बानी हुई है। भीलवाड़ा से लगभग 85 किलोमीटर दूरी पर स्थित जहाजपुर में महाभारत कालीन सभ्यता के अवशेष देखने को मिलते है।

भीलवाड़ा में 1938 में मेवाड़ टेक्सटाइल मिल्स की स्थापना हुई थी। उसके बाद वस्त्र उद्योग का बहुत ही तेजी से विकास हुआ और देखते ही देखते भीलवाड़ा एक बहुत बड़ा टेक्सटाइल हब बन गया इसी कारण से भीलवाड़ा को राजस्थान का मैनचेस्टर कहा जाने लगा।

भीलवाड़ा के इतिहास से जुड़े प्रमुख व्यक्तित्व

माणिक्यलाल वर्मा

माणिक्यल वर्मा का जन्म भीलवाड़ा के बिजौलिया क्षेत्र में हुआ था 18 अप्रैल 1948 को माणिक्यलाल संयुक्त राजस्थान के प्रधानमंत्री बने थे और मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना का श्रेय भी इन्ही को जाता है। प्रजामण्डल आंदोलन के दौरान माणिक्यलाल वर्मा को कुम्भलगढ़ दुर्ग में नजरबन्द किया गया था। माणिक्यलाल वर्मा को मेवाड़ के गाँधी के नाम से भी जाना जाता है और इन्होने “मेवाड़ का वर्तमान शासन” नामक किताब भी लिखी थी।

केसरीसिंह बारहठ

केसरीसिंह बारहठ राजस्थान के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सैनानी थे इनका जन्म 1872 ई. में भीलवाड़ा के शाहपुरा कस्बे के देवखेड़ा गाँव में हुआ था। 1903 ई में केसरीसिंह बारहठ ने मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह को 13 सोरठे डिंगल भाषा में भेट किये थे जब वे दिल्ली दरबार में आयोजित सभा में भाग लेने जा रहे थे।

सन 1910 में केसरीसिंह ने वीर भारत सभा की स्थापना की थी। साधू प्यारेलाल हत्याकांड में उन्हें 20 साल की सजा देकर झारखण्ड के हजारीबाग जेल में भेज दिया गया था। केसरीसिंह को राजस्थान केसरी और योगी पुरुष भी कहा जाता है। उन्होंने प्रताप चरित्र, रूठी रानी, राजसिंह चरित्र व दुर्गादास चरित्र नामक पुस्तकें भी लिखी।

जोरावरसिंह बारहठ

जोरावर सिंह बारहठ केसरीसिंह बारहठ के छोटे भाई है। सन 1912 में इन्होने दिल्ली के चांदनी चौक स्थान पर लार्ड हार्डिंग्स पर बम फेका था। जोरावरसिंह को राजस्थान का चन्द्रशेखर और अमरदास वैरागी भी कहा जाता है।

प्रतापसिंह बारहठ

प्रतापसिंह बारहठ 1912 में लार्ड हार्डिंग्स बम काण्ड में अपने चाचा जोरावरसिंह के साथ थे। बनारस षड़यंत्र के तहत इनको गिरफ्तार किया गया और बरेली जेल में रखा गया। जेल में इनके साथ बहुत अत्याचार किये गए और जेल में ही इनकी मृत्यु हो गयी।

साधु सीताराम दास

साधु सीताराम दास बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रणेता थे इनका जन्म भीलवाड़ा के बिजोलिया में हुआ था। 1916 में सीताराम दास ने किसान पंचबोर्ड का गठन किया था। इनके आग्रह पर विजय सिंह पथिक बिजोलिया किसान आंदोलन में शामिल हुए थे।

जानकीलाल भांड

जानकीलाल भांड एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बहरूपिया कलाकार है उनका जन्म भीलवाड़ा के अंगूचा में हुआ था। जानकीलाल लन्दन में मंकीमैन के नाम से लोकप्रिय है।

भीलवाड़ा की भौगोलिक स्थिति

राजस्थान राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित भीलवाड़ा जिला मध्यप्रदेश राज्य के साथ सीमा शेयर करता है। 10455 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ यह जिला राजस्थान का 13वां सबसे बड़ा जिला है। अगर भीलवाड़ा जिले के पड़ौसी जिलों की बात करें तो चित्तौड़गढ़, राजसमंद, अजमेर, टोंक और बूँदी इसके पड़ौसी जिले है।

पूर्वी मैदानी भागों में स्थित यह जिला बनास और कोठरी नदी के बीच बसा हुआ है। भीलवाड़ा जिले का भूभाग सामान्यतः एक उठे हुए पठार के समान है जिसके पूर्व के कही-कही पहाड़ियाँ भी देखने को मिलती है। भैंसरोड़गढ़ से लेकर बिजोलिया तक का क्षेत्र उपरमाल की पहाड़ियों में बसा हुआ है।

भीलवाड़ा की जलवायु

राजस्थान राज्य के भीलवाड़ा जिले की जलवायु की बात करे तो यह उप आर्द्र जलवायु प्रदेश है। यहाँ का तापमान शीतकालीन में 12 से 18 डिग्री सेल्सियस और ग्रीष्मकालीन में 28 से 32 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। इस क्षेत्र में 40 से 60 सेमी वर्षा देखने को मिलती है। पर्वतीय वनस्पति एवं पतझड़ वनस्पति पायी जाती है जिसमें आम, नीम, आंवला, बबूल आदि वृक्ष प्रमुख है।

भीलवाड़ा की बोली

भीलवाड़ा क्षेत्र में बोली जानी भाषा की बात करे तो यहाँ मुख्यतः मेवाड़ी भाषा बोली जाती है। मेवाड़ी इस क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय बोली है। इसके अलावा यहाँ कुछ लोग राजस्थानी और हिन्दी भाषा बोलते हुए मिल जाएंगे।

भीलवाड़ा के प्रमुख त्यौहार और मेले

  • सवाई भोज का मेला – सवाई भोज का मेला आसींद (भीलवाड़ा) में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला षष्ठी और सप्तमी को लगता है।
  • फूलडोल का मेला – फूलडोल का मेला यहां का प्रसिद्द मेला है जो शाहपुरा में रामनिवास धाम में लगता है। चैत्र महीने में 5 दिनों तक यहाँ एक विशाल मेले का आयोजन होता है।
  • सौरत (त्रिवेणी) का मेला – त्रिवेणी संगम, सौरत, (मेनाल, मांडलगढ़) में हर वर्ष शिवरात्रि के पर्व पर विशाल मेला लगता है।  
  • धनोप माता का मेला – खारी व मानसी नदी के बीच स्थित धनोप गाँव में हर वर्ष चैत्र शुक्ल 1 से 10 तक विशाल मेला लगता है।
  • तिलस्वां महादेव मेला – मांडलगढ़ के तिलस्वा में हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर मेले का आयोजन होता है।
  • देवनारायण जी का मेला – देवनारायण जी का मेला हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को लगता है।
  • माण्डल का नाहर नृत्य – यह भीलवाड़ा के माण्डल का एक प्रसिद्ध नृत्य है जिसका प्रारम्भ मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के समय हुआ था। इस नृत्य में पुरुष अपने शरीर पर रुई चिपकाकर नाहर का रूप धारण करके नृत्य करते है।
  • मांडलगढ़ का जलझूलनी उत्सव
  • गुलाबपुरा का मयूर दशहरा

भीलवाड़ा के प्रमुख दर्शनीय स्थल

माण्डलगढ़ का किला

भीलवाड़ा से पूर्व में लगभग 54 किलोमीटर की दुरी पर माण्डलगढ़ का किला स्थित है। इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में शांकभरी के चौहानों के द्वारा करवाया गया था। किले के अंदर ऋषभदेव जैन मंदिर और ऊंडेश्वर और जलेश्वर महादेव दो प्रमुख शिवमंदिर मौजूद है।

इनके अलावा किले में रूप सिंह द्वारा बनवाया महल, सैनिकों के आवासगृह, सागर और सागरी जलाशय, दो पातालतोड़ कुएं व किले के पूर्व और उत्तर में जालेसर और देवसागर तालाब मौजूद है।

मेनाल वॉटरफॉल

मेनाल जलप्रपात भीलवाड़ा जिले के लाडपुरा कस्बे के पास पत्थर की खदानों के बीच बसे छोटे से गांव बूंदी में है। यह झरना पूरी तरह से प्राकृतिक है। यहां 7 झरने एक साथ बहते हैं। ऊँचाई से गिरते जल के इस सुन्दर नज़ारे को देखने के लिए यहाँ पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। इसके अलावा मेनाल के महाकालेश्वर मंदिर, रूठी रानी का महल और हजारेश्वर मंदिर दर्शनीय है।

सवाई भोज का मन्दिर

भीलवाड़ा जिले के आसीन्द में सवाईभोज का मन्दिर बना हुआ है जो गुर्जर समाज का प्रमुख तीर्थस्थल है। सवाई भोज गुर्जर समाज के लोकदेवता है जो भिनाय के शासक दुर्जनशाल से लड़ते हुए शहीद हो गए थे।

बिजौलिया

भीलवाड़ा का बिजौलिया नगर प्रसिद्ध है यहाँ चट्टानों पर उत्कीर्ण शिलालेखो, जैन व ब्राह्मण मन्दिरों और यहाँ के प्रसिद्ध बिजौलिया किसान आंदोलन के कारण जिसमे वहाँ के जमींदारों के द्वारा किसानों पर 84 प्रकार के कर लगाए जाने के बाद किसानों ने इसके खिलाफ जमकर आंदोलन किया था।

जहाजपुर

जहाजपुर भीलवाड़ा जिले का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है। जहाजपुर का पुराना किला, बड़ा देवरा और गैबीपीर के नाम से प्रसिद्ध मस्जिद प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहाँ जैन धर्म का मंदिर भी है जो स्वस्तिधाम के नाम से जाना जाता है।

बदनौर दुर्ग

बदनौर का किला भीलवाड़ा जिले की आसींद तहसील के एक छोटे से गाँव में स्थित है। दनोर दुर्ग में प्रवेश के लिए एक बड़ा द्वार है जिसे बड़ा दरवाजा नाम से जाना जाता हैं। इस बड़े दरवाजे के पास ही दो मन्दिर बने हुए है बदनोर किले में कई कारागार की सेल भी बनी हुई है जहाँ कैदियों को रखा जाता था।

बागोर साहिब

भीलवाड़ा की माण्डल तहसील के बदनोर गाँव में दसवें गुरु गोविन्द सिंह को समर्पित बागोर साहिब का गुरूद्वारा बना हुआ है जो बहुत ही सुन्दर और आकर्षक है।

देवनारायणजी का मन्दिर

भीलवाड़ा के आसींद में गुर्जर समाज के लोकप्रिय लोकदेवता देवनारायणजी का मंदिर बना हुआ है जिनको विष्णु का अवतार माना जाता है। देवनारायणजी के मंदिर में ईंटों की पूजा की जाती है और नीम के पत्तों का प्रसाद चढ़ाया जाता है। बगड़ावत महाभारत का संबंध इन्ही लोकदेवता से है।

चमना बावड़ी

भीलवाड़ा में शाहपुरा के राजा उम्मेदसिंह के द्वारा इस तीन मंजिला चमन बावड़ी का निर्माण करवाया था जो देखने में बहुत ही सुन्दर और आकर्षक दिखाई पड़ती है।

शाहपुरा

भीलवाड़ा का शाहपुरा रामस्नेही संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है। रामस्नेही संप्रदाय एक आध्यात्मिक और धार्मिक परंपरा है जिसकी उत्पत्ति 1817 में राजस्थान के भीलवाड़ा शहर में स्वामी श्री राम चरण महाराज के शिष्य द्वारा विक्रम संवत में हुई थी, जिन्होंने संप्रदाय के लिए आध्यात्मिक और दार्शनिक आधार प्रदान किया था।

पुर उड़ान छतरी

पुर उड़न छतरी भीलवाड़ा शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। यह उड़न छतरी और आधारशिला महादेव के लिए प्रसिद्ध हैं। जहाँ एक छोटी सी चट्टान के ऊपर एक विशाल चट्टान के विश्राम करने का भौगोलिक आश्चर्य पर्यटकों को आकर्षित करता है।

क्यारा के बालाजी

भीलवाड़ा शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दुरी पर स्थित क्यारा के बालाजी मंदिर प्रयटकों के आकर्षण का एक प्रमुख स्थान है। यह मंदिर हिन्दुओं के लोकप्रिय भगवान श्री राम के प्रिय पवन पुत्र हनुमान जी को समर्पित है।

भीलवाड़ा के कुछ अन्य दर्शनीय स्थल

हरणी महोदव, गाँधी सागर तालाब, जटाऊँ शिव मंदिर, दरगाह हजरत गुल अली बाबा, माधव गौ विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, माण्डल की 32 खम्भों की छतरी, गायत्री शक्तिपीठ, धनोप माताजी, श्री बीड़ के बालाजी, श्री चारभुजा नाथ मन्दिर, चामुंडा माता मंदिर, बनेड़ा, लव गार्डन आदि।

भीलवाड़ा की प्रमुख नदियाँ और बाँध

  • मानसी नदी – मानसी नदी का उद्गम मांडलगढ़ तहसील से होता है। इस नदी पर अड़वान बाँध बना हुआ है।
  • मेज नदी – यह भीलवाडा की माण्डलगढ़ तहसील से निकलकर बूँदी जिले में बहती हुई कोटा के पास भैंस खाना के पास बूँदी की सीमा पर चम्बल में मिल जाती है।
  • भीलवाड़ा की अन्य नदियाँ – मांगली नदी, घोड़ा पछाड़ नदी, मेनाल नदी, बेड़च नदी, खारी नदी, बनास नदी, कोठारी नदी आदि।
  • मेजा बाँध – मेजा बाँध भीलवाड़ा का प्रमुख बाँध है जहाँ से भीलवाड़ा को जलापूर्ति होती है। मेजा बाँध के पास ग्रीन माउंट नामक गार्डन बना हुआ है जो फूलों और सब्जियों के लिए प्रसिद्ध है। भीलवाड़ा का मेजा बांध अपने प्राकृतिक परिवेश के कारण पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।

भीलवाड़ा का प्रसिद्ध हस्तशिल्प

फड़ चित्रण – खादी के कपड़े पर देवताओं की लीलाओं का चित्रण करना फड़ चित्रण कहलाता है। भीलवाड़ा के शाहपुरा की फड़ पेंटिंग विश्व प्रसिद्ध है और श्रीलाल जोशी इसके प्रसिद्ध कलाकार है। इन्हे पदमश्री पुरुस्कार से भी सम्मानित किया जा चूका है। इन प्रसिद्ध फड़ चित्रण को अमेरिकन म्यूजियम में भी शामिल किया गया।

भीलवाड़ा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  • राजस्थान में सबसे ज्यादा वस्त्र उद्योग का विकास भीलवाड़ा में होने के कारण इसे राजस्थान का मैनचेस्टर भी कहा जाता है।
  • सन 1964 में सर्वप्रथम वनस्पति घी के कारखाने की स्थापना भीलवाड़ा में ही हुई थी।
  • भीलवाड़ा में सबसे ज्यादा सिंचाई तालाबों से होती है इसलिए इसे तालाबों का शहर भी कहा जाता है।
  • भीलवाड़ा का रामपुरा आगूचा सीसा-जस्ता के उत्पादन के लिए प्रसिद्द है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक पीतल के बर्तनों के निर्माण का श्रेय भीलवाड़ा को जाता है।
  • भीलवाड़ा के जानकीलाल भाण्ड अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बहरूपिया कलाकार है।
  • भीलवाड़ा का शुभंकर पक्षी मोर है।
  • भीलवाड़ा भोडल की छपाई के लिए भी प्रसिद्द है।
  • भीलवाड़ा कम्प्यूटर एडेड डिज़ाइन सेन्टर मौजूद है।
  • भीलवाड़ा का माणिक्यलाल वर्मा टेक्सटाइल इंस्टिट्यूट एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है।

1. भीलवाड़ा का सबसे निकटतम हवाई अड्डा कौनसा है?

भीलवाड़ा का सबसे निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है जो भीलवाड़ा से लगभग 106 किलोमीटर की दुरी पर है।

2. भीलवाड़ा का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कौन सा है?

भीलवाड़ा शहर के अंदर रेलवे स्टेशन मौजूद है जो विभिन्न छोटे-बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।

3. भीलवाड़ा घूमने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

भीलवाड़ा घूमने के लिये आप सर्दियों या ठन्डे मौसम का चुनाव करे तो बेहतर रहेगा। गर्मी के मौसम में यहाँ का मौसम गर्म रहता है।

निष्कर्ष – इस लेख में हमने भीलवाड़ा का इतिहास, भूगोल और रोचक तथ्य की जानकारी दी उम्मीद है भीलवाड़ा के बारे में यह विस्तृत लेख आपको पसंद आया होगा। इस लेख से सम्बंधित आपका कोई विचार या सुझाव हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे।